Daud (Kahani Sangrah) INR 100.00
Book summary
आज का मानव स्व-केन्द्रित हो गया है और अस्तित्व की तलाश में मारा-मारा फिरता है। स्वार्थपरता उसकी रगरग में झलकती है। रिश्ते-नाते रेत की दीवार पर खडे़ है। यदि इन टूटते-बिखरते रिश्तों को जोड़ने वाली कोई कड़ी है तो वह है पैसा। दर्द, चीत्कार, घृणा, आक्रोश, संताप, त्रासदी का यह सिलसिला निरन्तर चलता ही जा रहा है। इन कहानियों में रोज की जिन्दगी का कटु सत्य विद्यमान है। राजनीतिक, धार्मिक, सामाजिक विघटन का शिकार कोई-न-कोई सदस्य इन कहानियों की खिड़की से झांक रहा है। किसी युवक की बेरोजगारी की सड़क को नापने की पदचाप, किसी नारी की आबरू बचाने की चीख, ठग-लुटेरों के मायाजाल में फंसे प्राणी, इन कहानियों में फड़फड़ाते नजर आते हैं।