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Balmiki Aur Prakrit Apbharansh Ram Sahitya (Hardback)

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Valmiki Aur Prakrit Apabhransh Ram Sahitya INR 600.00

Book summary

प्राचीन भारतीय साहित्य में प्राकृत एवं अपभ्रंश काव्योपजीवी काव्यों का स्थान महत्त्वपूर्ण है। प्राचीन भारत में साहित्य, संस्कृति एवं धार्मिक वृत्तियों में अनेकता नहीं थी। वाल्मीकि रामायण की सर्जना का युग दैवी संपत्ति एवं शक्तियों के मानवीकरण का था। वैदिक सूक्तों में वर्णित दैवी शक्तियों का स्वरूप पुंजीभूत होकर वाल्मीकि का राम बना- इसमें सभी गुण रमते थे। आसुरी शक्तियों एवं वृत्तियों का मूर्त्त रूप रावण बना तथा वाल्मीकि की कल्पना और भावप्रवणता का गांभीर्य अभिव्यक्त होकर रामायण बना। राम विश्व मानव के मानवीय गुणों के आदर्श पुरुष हैं। इनके चरित्र का उदात्त निदर्शन वाल्मीकि की प्रतिभा का चूड़ान्त स्फुरण है। मानवीय मूल्यों की प्रतिष्ठा करते हुए विश्वसाहित्य की अनुपम कृति का अवदान भारतीय आर्ष कवि ने दिया है। राम का स्पृहणीय चरित्र समुद्रसीमा के साथ धर्म सीमा भी लांघ गया। वाल्मीकि की रामकथा की लोकप्रियता ने राम को जैन धर्म के तिरसठ या चौपन महापुरुषों में भी प्रतिष्ठित करा दिया। वाल्मीकि एक भारतीय जीवन दर्शन की झांकी प्रस्तुत करते हैं, अस्तु वे विश्वकवि बन गए हैं। वाल्मीकि का स्थान हजारों वर्षों के बाद भी अक्षुण्ण और अप्रतिम है। वह व्यापक दृष्टिकोण का पक्षधर है तो जैन रामायण एकांगी एवं विशेष धर्मपरक रह गये हैं। वाल्मीकि की रामकथा जैनों द्वारा लिखित प्राकृत एवं अपभ्रंश के रामकाव्यों में परिवर्तित होती गयी और मानवमात्र के आदर्श राम को जैनों के आदर्श राम बना दिया गया है। कथाओं, चरित्र निरूपणों एवं आम व्यक्तियों के संदर्भ में वाल्मीकि को केन्द्र में रखकर यह स्टडीस प्राकृत एवं अपभ्रंश रामकाव्यों की व्याप्ति में परिलक्षित किया गया है।

Book Details

वाल्मीकि और प्राकृत अपभ्रंश राम साहित्य

Author
Pandit Mithila Prashad Tripathi
KKBN #
6000-AA-A050
Year
2007
Language
Hindi
Binding
Hardcover
Pages, Ills etc.
408pp
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Publishing Year is '2007'

Balmiki Aur Prakrit Apbharansh Ram Sahitya (Hardback) Book Review

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