Basara Ki Galiyan (Upnyaas) INR 180.00
Book summary
अजय शर्मा का सृजन संसार अपने सहज पाठ में, जटिल सामाजिक विसंगतियों और अन्तर्विरोधों की जिन प्रतिकृतियों को सान्द्र संवेदनशीलता के साथ उकेरने का उपक्रम समाज सापेक्ष सरोकारों और सकारात्मक दृष्टि के संदर्भ में करते हैं-उसके भीतर की छटपटाहट की आग को उनकी अहम अभिव्यक्ति से गुजरते हुए गहरे महसूस किया जा सकता है। उनसे अपने सृजन पाठ में और-और पैंठने और तलछट को भेदने के सार्मथ्य के अर्जन की अपेक्षा करना इसलिए असंगत न होगा, क्योंकि समय की उथल-पुथल और उससे उपजे, उसके आर्थिक, राजनीतिक, मानसिक दबावों और दिनों- दिन सिमटती भावनात्मक और संवेदनात्मक मानवीयता के भयावह विद्रूप की नब्ज पर उँगली रखने की परिश्रमी क्षमता है। तभी वे ‘बसरा की गलियाँ’ उपन्यास लिख पाये हैं और शहर दर शहर हमारे हाथों में दे पा रहे हैं-उन्हें ‘भूलना न होगा’ उनके युवा उपन्यासकार के कंधें पर कृष्णा सोबती,अश्क,भीषम साहनी, मोहन राकेश जैसे कालजयी पंजाबी-हिंदी रचनाकारों की समृद्ध विरासत की चुनौतीपूर्ण उत्तरदायित्व का भार टिका हुआ है।-चित्रा मुद्गल ‘बसरा की गलियाँ’ का कथ्य उस नई चेतना से जुड़ा है, जिसका एक हाशिया एशिया के देशों को प्रभावित करता है, तो दूसरी ओर यूरोप के देश भी इससे वंचित नहीं है। उपन्यास सामाजिक यथार्थ की सशक्त अभिव्यक्ति करता है। डॉ॰ अजय शर्मा ने प्रस्तुत उपन्यास में नई जमीन खोजी है। भारतीय भाषाओं में विश्व की अद्यतन समस्या को लेकर लिखा गया अभी तक शायद यह पहला उपन्यास है। काल चेतना की दृष्टि से बसरा की गलियाँ नए ओपन्यासिक शिल्प को रेखांकित करने में समर्थ है। उपन्यास हिंदी धारा में अलग खड़ा दिखाई देता है।-डॉ॰ हरमहेन्द्र सिंह बेदी