Sindhi-Kachhi Lok Sanskriti Parampara INR 600.00
Book summary
भारत का लोक सांस्कृतिक वितान अत्यंत विशद और गहरा है सिंधी और कच्छी लोक संस्कृति एवं कलाएँ इस वृहद विशद् वितान के इन्द्रधनुष का एक अन्यतम आलोक रंग है। इस आलोक रंग की अन्तर-ध्वनियों में बैठ कर डॉ॰ जेठोलालवाणी ने सिंधी-कच्छी लोक संस्कृति एवं कलाओं की अन्तर्भूमि का शोध किया है। भारत की विलुप्त लोक सांस्कृतिक परम्पराओं, कलाओं को जीवंत करने के प्रयास निश्चित रूप से सराहनीय हैं। इस दिशा में सिंधी-कच्छी लोक संस्कृति और कलाओं को लेकर जेठोलालवाणी का यह प्रयास एक ठोस चरण है।भारतीय लोक संस्कृति एवं लोक कलाएँ अपने आपमें बरगदी संस्कृति है। इसकी जड़ें जितनी पृथ्वी के जल गर्भ में है उतनी ही बाहर भी हैं, इसलिए इसका पोषण धरती और जल ही नहीं करते अपितु तेज, वायु और आकाश भी करते हैं, जिसका मनुष्य पिण्डीभूत रूप है। पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश की इस समरसी घुलनशीलता की साक्षात प्राणचेतना ही भारतीय मानस की लोक रस रंग लीला है। यह पंचमुखी रूद्राक्ष दर्शन ही हमारी लोक चिन्तन का संवाहक है और यही तत्व हमारी संस्कृति तथा विचार जड़ों का रस-कलश है। इसी का संरक्षण डॉ॰ जेठोलालवाणी का मुख्य उद्देश्य है।सिंधी-कच्छी लोक संस्कृति और कला-विमर्श की इस कठिन यात्रा को डॉ॰ जेठो लालवाणी ने अपने इस स्टडीस-चिंतन से सहज-सुकर बना दिया है। लोक सांस्कृतिक कलात्मक रस ध्वनियों ने इनके चिंतन को गहरा और पैना बनाया है। कसावट और थिरकती तर्क शक्तियाँ नई दिशाओं को संकेतित कर इनके अनुसंधान-शोध को प्रामाणिक के ही नहीं बनाती अपितु युगनद्ध मूल्यों से जोड़ती है। सिंधी-कच्छी लोक संस्कृति के इस कलात्मक कलश का कृति रूप में मैं स्वागत करता हूँ और डॉ॰ जेठो लालवाणी के इस क्षेत्र में निरन्तर सक्रिय रहने की आशा भी।