Hindi Natak INR 636.00
Book summary
साहित्य की अन्य विधाओ ने भी मनुष्य को देवदारु की तरह ऊँचा उठाया लेकिन नाटक ने उसके भीतरी द्धंद्ध को खासतौर से तराशा , उसे फैलाने से रोका , उसे बांधा , काल - धार पर चढ़ाया,मथा, निचोड़ा, जोड़ा, रस्सी सा बंटा और संघर्ष-जिजीविषा की आधिकारिक कथा का नायक-खलनायक बना दिया । जीवन के स्थायी भाव को सुरक्षित-संरक्षित रखने के लिए कालानुरूप अपनी भंगिमाये निरन्तर बदली और आज बीज से वट बनकर भी अपनी शाखाओ - प्रशाखाओ का विस्तार कर रहा है । नाट्य-साहित्य की विशेषज्ञ , अध्येता, अनुसंधात्री डॉ॰ वीणा गौतम ने इसी चक्रधारी समय की बहुत बारीक कताई की है ।