Telugu Lok Sahitya INR 280.00
Book summary
अनेक विद्वानों ने ‘लोक’ शब्द का अंग्रेजी ‘Folk lore’ के पर्यायी माना है। ‘टॅामस’ नामक विद्वान् ने 1846 में प्रथम ‘Folk lore’ शब्द का प्रयोग किया है। इसके कुछ समय बाद भारत में ‘Folk’ के आधार पर ‘लोक’ शब्द की प्रयुक्ति होने लगी। जिसका अर्थ है–देखना, निहारना, प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त करना जानना या जानकार होना है। इसी लोक ‘धातु’ में धत् प्रत्यय जोड़ने से ‘लोकः’ शब्द की उत्पत्ति हुई जिसका अभ्रिपाय है–संसार, विश्व का एक प्रभाग, मनुष्य, मनुष्य जाति, प्रजा, राष्ट्र के व्यक्ति, समुदाय, समूह, समिति इत्यादि। इससे स्पष्ट हो रहा है कि प्रकृति की गोद में मुक्त रूप से जीने वाले एक राष्ट्र जन-समुदाय का सर्वप्रचलित पर्याय ‘लोक’ है। ऋग्वेद में ‘लोक’ शब्द का प्रयोग स्थान एवं भवन के अतिरिक्त ‘जीण’ भी है। ‘ऐतरम’ उपनिषद् में विस्तृत अर्थ में स्थान से उन स्थलों में रहने वाले जन समुदाय के अर्थ में ‘लोक शब्द’ का प्रयोग हुआ। इससे स्पष्ट है कि ‘लोक’ माने ‘व्यापक जन समुदाय’ है।श्रीमद्भगवद्गीता में ‘लोक’ शब्द का प्रयोग प्रायः व्यापक मानव-समुदाय के अर्थ में किया है। भारतीय संदर्भ में ष्थ्वसाष् ‘लोक’ का पर्यायी नहीं है। ‘लोक’ में भूत, भविष्य और वर्तमान समाहित है। ‘लोक’ ज्ञान का प्रत्यक्ष दर्शन कराती है। अतः ‘लोक’ प्रकृति के सरल वातावरण में बसने वाला जनसमुदाय है जो अपनी परंपरा का प्रत्यक्ष दर्शन करते हुए उनसे प्रेरणा ग्रहण कर, प्रेम और शांति से सहजीवन करने वाले हैं। प्राकृतिक परिवेश, अकृत्रिमता एवं सरल वातावरण गाँवों में अधिक पाए जाते हैं। अतः गाँव ‘लोक’ का प्रतिनिधित्व करता है। समुदाय का मन, बुद्धि और चेतना का सम्मिश्रित रूप लोक-संस्कृति है, लोक के आचार-विचार, रीति-रिवाज, प्रेम-द्वेष, घृणा, आक्रोश, मूल्य, संकल्प-विकल्प, आस्था- अनास्था, चिंतन-मनन, राग-विराग सब लोक-संस्कृति के अंश हैं। लोकाचार, लोकगाथाएँ, लोकगीत, लोकनाट्य, लोकवेद्, लोककलाएँ, लोककल्प इसके अंग हैं। लोक-संस्कृति लोक की जीवंतता का प्रमाण है।आंध्रों के जन-जीवन को आंध्र लोक- साहित्य, प्रतिबिंबित करता है। तेलुगू, तेलुगू आंध्र पर्यायवाची शब्द है। भारतीय वाङ्मय अनेक भाषाओं में अभिव्यक्त एक ही विचार है। फिर भी प्रत्येक जाति की एक अलग संस्कृति होती है। उस संस्कृति को उस प्रांत की भाषा प्रतिबिंबित करती है। आंध्रों के जन-जीवन एवं संस्कृति को प्रतिबिंबित करने वाले इस साहित्य को हिंदी क्षेत्र तक पहुँचाने के उद्देश्य से मैंने प्रस्तुत ग्रंथ में आंध्र लोक-साहित्य की विविध विधाओं पर संक्षिप्त रूप से प्रकाश डालने का प्रयास किया है। आशा है कि साहित्य-जगत तेलुगू जाति के रागात्मक अनुभूतियों एवं आनंदोल्लासित हृदयोद्गारों का अवलोकन कर सकेगा।