Dandi Ka Lalitya-Vaibhav Suresh Gautam INR 600.00
Book summary
साहित्यिक आलोचना और सर्जना के क्षेत्र में डॉ॰ सुरेश गौतम एक अति-विशिघ् नाम है। अतिविशिघ् इसलिए कि उनकी समीक्षा शैली सर्वथा रूढ़िमुक्त, पूर्वाग्रहरहित और तथ्यपरक है। साथ ही उनकी तत्त्वान्वेषिणी मेधा आलोचना के नीरस समझे जाने वाले सैकत परिसर में भी सरस अभिव्यक्ति के ललित स्रोतों का सर्वत्र संधान करती है। आलोचना के खुरदरे पट पर उन्होंने साहित्येतिहास और सर्जना के कौशेय तन्तु इस प्रकार बुने है कि आलोचना का एक नया पथ ललित आलोचना के नाम से प्रशस्त हो चला है।तीन दर्जन से अधिक मौलिक एवं संपादित ग्रंथों के सफल प्रस्तोता डॉ॰ सुरेश गौतम के साहित्यिक प्रदेय का गंभीर स्टडीस करने पर स्पघ् होता है कि उनकी रचनाधारा एक ओर समीक्षा के गुरुतर आचार्यत्व का निर्वाह करती है तो दूसरी ओर सर्जना एवं इतिहास लेखन के कठिन लेखकीय कर्त्तव्य का पालन करती हुई साहित्य को समृद्ध करती है। सृजन (इतिहास लेखन) एवं समीक्षण की ये दोनों धाराएं ऊपर से विरोधी-सी प्रतीत होती हैं किन्तु डॉ॰ गौतम के विस्तृत कृतित्व में ये एक दूसरे की पूरक हैं, परस्पर अनुस्यूत हैं। साहित्यिक इतिहास में समीक्षा और समीक्षा में साहित्यिक इतिहास लेखन की यह प्रयोगधर्मिता अन्यत्र दुर्लभ है।डॉ॰ सुरेश गौतम के सृजन में गंभीर गवेषणा है; अन्वेषण,-पर्यवेक्षण और तथ्य परीक्षण है; मौलिक चिन्तन है; सारग्राहयता में तटस्थता और निस्पृहता के साथ-साथ भारतीयता के प्रति गहरी रागात्मकता भी है। इसलिए उनका साहित्यक प्रदेय अद्भुत एवं अविस्मरणीय है। उनकी रचनाधर्मिता परवर्ती लेखकों के लिए दिशा-दर्शन का ज्योति-प्रद उज्ज्वल आकाशदीप है, जिसके धवल आलोक में भारतीय-जीवन अपनी अक्षय अस्मिता का संरक्षण कर सकता है।डाँ. सुरेश गौतम के लेखन में संस्कृत के कवि-लेखकों की परम्परा का अभिनव स्वरूप और विकास मिलता है। कालिदास का ‘उपमा विधान’ (अलंकारिकता), और उनकी भारतीयता के प्रति रागात्मकता, महाकवि भारवि का ‘अर्थ-गौरव’ और आचार्य प्रवर दण्डी का ‘पद लालित्य’ डॉ॰ गौतम की शब्द साधना में एक साथ विद्यमान हैं, अतः वे महाकवि माघ की रचनापरम्परा के समर्थ संवाहक सिद्ध होते हैं किन्तु उनकी ललित गद्य लेखक की छवि और पद लालित्य के निमित्त अलंकारिकता और अर्थ गौरव का सन्निवेश उन्हें आचार्य दण्डी के समतुल्य प्रतिङित करता है।लेखन की रसमयी शब्द साधना को समर्पित यह समीक्षा कृति परम्परा में आधुनिकता और राघ्र्ीयता में अन्तर्राघ्र्ीयता का स्तवन है। इस ग्रंथ के स्टडीस-आलोक में न केवल हिन्दी गीत-समीक्षा की सुदीर्घ विकास यात्रा और भारतीय साहित्य-संस्कृति की सनातन मानव-मूल्य चेतना की छवि दीप्त है अपितु हिन्दी साहित्य की विविध विधाओं के रूप में भारतीय साहित्य की मूल वृत्तियाँ और शक्तियाँ भी रेखांकित हुई हैं। इसलिए यह समीक्षा कृति पठनीय एवं संग्रहणीय है।