Tapparavas (Upanyas) INR 156.00
Book summary
सैली बलजीत की कहानियों को पढ़ना, हाशिए के शोक गीतों से दो-चार होना है। वह अब भी उसी शिद्दत से हाशिए के दलदल में जीने को अभिशप्त आम आदमी के संसार की कहानियाँ गढ़ रहा है। उनकी कहानियाँ सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था के खिलाफ एक हथियार हैं। वह कभी सपाट भाषा में आम आदमी के शोषण और दमन की आवाज बुलंद करता है तो कभी प्रतीकात्मक स्तर पर विसंगतियों के बीच स्त्री-पुरुष के बदलते संबंधों को संवेदनात्मक गहराई से उकेरता है।‘टप्परवास’ सैली बलजीत का ग्यारहवाँ कहानी-संग्रह है। यहाँ भी उस आदमी की यातना का चित्रण है, जो फटेहाल है, भूखा है, गरीबी की दलदल में जीने को विवश है। सैली बलजीत छटपटा रही आत्माओं के कहानीकार हैं। सैली बलजीत की कहानियाँ अब सन्नाटा भंग करने का सामर्थ्य रखती हैं, उसकी कहानियों का देश-भर में नोटिस लिया जाना, शुभ संकेत है। देश-भर के नामीय कथाकार, छोटे-से शहर पठानकोट में रहने वाले कथाकार सैली बलजीत की बड़ी कहानियों का उल्लेख करते हैं, कमलेश्वर, महीप सिंह, राजेंद्र यादव, ममता कालिया, चित्रा मुद्गल, मोहन सपरा, सतीश जमाली, शैलेन्द्र सागर, नासिरा शर्मा, मेहरूनिसा परवेज़, से.रा. यात्री ने उसकी कहानियों पर टिप्पणियाँ की हैं।‘टप्परवास’ में संकलित कहानियाँ भी उसी भव्यता से आम आदमी के शोषण की बात करती हैं। वह कहानी को भोगता है, उसका चेहरा-मोहरा सँवारता है, दोस्तों से मंत्रणाएँ करता है, कहानी को बुनता है और चौबीस घंटों भीतर सरसराती कहानियों की प्रसव पीड़ा झेलता है। कैसा जुनून पाल रखा है उसने, आम आदमी की कहानियाँ लिखने का? सच तो यही है कि सैली बलजीत ने हाशिए के उन अंतरकोनों को टटोला है, जिन पर बातें तो सभी कर लेते हैं, लेकिन उन्हें देखने-जानने की कोशिश कौन करता है? सैली की वह सब कोशिश ही ‘थके-टूटे’, ‘परशाद’, ‘कीड़े’, ‘भूखे-नंगे’, ‘लावा’, ‘हाड़-माँस के पुतले’, ‘संरक्षण’, ‘भय’ तथा ‘टप्परवास’ की हाशिए की भयावह अँधेरी दुनिया के तलछट के करीब ले जाती हैं, जहाँ पहुँचकर ही अविश्वसनीयता सहसा नंगी आँखों के सच में तब्दील होने लगती है।सैली बलजीत के इस नए कहानी-संग्रह ‘टप्परवास’ की कहानियाँ पाठकों को झकझोरने में सक्षम् होंगी और अपने गिरेबान में झाँकने के लिए मजबूर करेंगी। वह अपने मकसद में सफल हुए हैं, सैली की कहानियाँ इसकी साक्षी हैं...वह उसी गति से कहानियाँ लिख रहें हैं...भविष्य उनका है...