Teen Lok Se Nyari (Upanyas) INR 200.00
Book summary
साहिबा की मां ने उसके जन्म से पहले ही उसे गुरु-घर अर्पित करने का सोच रखा था और साहिबा को भी कह दिया गया था कि तुझे गुरु-घर देंगे, पर साहिबा ने समझा शायद वे उसे गुरु-घर में ब्याहेंगे। अब उसके जवान होने के बाद जब उसके ब्याह की चिंता हुई तो उसका पिता एक-दो अच्छे लड़कों की बात करने लगा, तो साहिबा को बड़ी हैरानी हुई। उसने हिम्मत करके बेबे को बोल ही दिया, "मैंने कहीं और ब्याह नहीं करना।" बड़ी मुसीबत में पड़ गए भाई रामू, वे व्याकुल भी थे कि गुरु-घर में उसका ब्याह किससे करेंगे?गांव के कुछ बुजुर्गों ने बैठ कर आपस में सलाह-मशवरा किया और यही नतीजा निकाला कि गुरु-घर को अर्पित की हुई बेटी कहीं और नहीं ब्याह सकते। पर प्रश्न यह उठ गया कि किसी भी गुरु-घर में पुत्र तो चढ़ाया जा सकता है परन्तु पुत्री नहीं। बाप के घर से या तो बेटी की डोली उठती है या फिर अर्थी। इस स्थिति में साहिबा का क्या किया जाए, किसी को समझ नहीं आ रहा था।बड़ी सोच-विचार के बाद भाई रामू ने गांव के बड़े बुजुर्ग और रिश्तेदार इकट्ठे किए और कई दिनों का मुश्किल रास्ता बैलगाड़ियों और घोड़ों से पार करते हुए साहिबा समेत आनंदपुर साहिब पहुँचे, जहां आज कल दसवें गुरु और उसके परिवार का निवास था।